बेंगलुरु के दो इनोवेटर्स ने भारत के टेक्सटाइल सेक्टर में क्रांति ला दी है। KOSHA.ai नामक डीप-टेक पहल ने IoT, AI और स्पेक्ट्रोस्कोपी का उपयोग करके न केवल कारीगरों की आय सुनिश्चित की है, बल्कि 10,000 किलोग्राम कपड़ा बर्बाद होने से बचाया है और 35,000 किलोग्राम कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) उत्सर्जन को कम किया है। यह तकनीक शिल्प और सर्कुलरिटी (Circularity) के मूल्यांकन के तरीके को बदल रही है।
कारीगरों के लिए संघर्ष और एक नई शुरुआत
विजय कुमार कृष्णाप्पा ने याद करते हुए बताया, "हमने देखा कि ₹50,000 में बिकने वाली कड़वा साड़ियों को बुनने वाले कारीगर उसका एक अंश भी नहीं कमा पाते थे। उनकी रचनाएँ दुनिया भर में यात्रा करती थीं, लेकिन उनका जीवन नहीं बदलता था।"
इस असमानता और निराशा ने ही KOSHA.ai को जन्म दिया। एक सुबह, बेंगलुरु में एक सामान्य रन के दौरान, विजय कुमार की मुलाकात अनुभवी इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियर रामकी (रामकृष्ण) कोडिपाडी से हुई। उनकी बातचीत इस बात पर केंद्रित थी कि आखिर टेक्सटाइल इकोसिस्टम इतना अपारदर्शी क्यों है और क्या तकनीक छोटे उत्पादकों की मदद कर सकती है?
विजय कुमार का टेक्सटाइल और कारीगरों के जीवन में अनुभव और रामकी की मजबूत तकनीकी सिस्टम बनाने की क्षमता ने इस पहल को जन्म दिया।
यह भी पढ़ें: सियाचिन में तैनात होने वाली पहली महिला ऑफिसर बनीं कैप्टन शिवा चौहान! दुनिया के सबसे ऊंचे युद्धक्षेत्र में रचा इतिहास!
वीवसेन्स (WeaveSENSE): विश्वास का संरक्षक
2020 तक, बाज़ार में नकली सामान बेतहाशा बढ़ गया था। घटिया पावरलूम उत्पादों को हथकरघा बताकर बेचा जाता था, जिससे खरीदार भ्रमित होते थे और बुनकरों पर से ग्राहकों का भरोसा उठ गया था। रामकी कहते हैं, "सर्कुलरिटी की शुरुआत सच्चाई से होती है। अगर आप फाइबर की पहचान नहीं कर सकते, तो आप उसे रीसायकल नहीं कर सकते।"
इस समस्या को हल करने के लिए, KOSHA ने WeaveSENSE नामक एक IoT डिवाइस लॉन्च किया। यह डिवाइस हथकरघा पर सीधे जुड़ जाता है। यह बुनाई की लय, टाइमस्टैम्प और छोटे वीडियो कैप्चर करता है, जिसे अंतिम उत्पाद पर लगे QR कोड के माध्यम से ग्राहक देख सकते हैं। इससे उन्हें पता चलता है कि उनकी साड़ी या कपड़ा कैसे बुना गया था।
जजपुर की बिरजा हैंडलूम प्रोड्यूसर कंपनी के सीईओ रंजन गुइन ने बताया कि अब ग्राहकों को प्रीमियम कीमत देने में कोई झिझक नहीं होती, क्योंकि उन्हें अपने शिल्प की प्रामाणिकता साबित करने में सम्मान महसूस होता है।
फाइबरसेन्स (FibreSENSE): सटीक रीसाइक्लिंग का समाधान
प्रामाणिकता के साथ-साथ, रीसाइक्लर्स को अपशिष्ट छँटाई में भी बड़ी समस्या आ रही थी, क्योंकि वे कपड़ों के प्रकार का अनुमान छूकर लगाते थे। फाइबरसेन्स (FibreSENSE) डिवाइस इसी समस्या का समाधान है। यह AI-संचालित तकनीक के साथ नियर-इन्फ्रारेड स्पेक्ट्रोस्कोपी का उपयोग करके सेकंडों में फाइबर की संरचना की पहचान करता है।
रामकी बताते हैं, "फाइबरसेन्स दुभाषिया है। यह सेकंडों में बताता है कि कपड़ा कपास, पॉलिएस्टर, ऊन, रेशम या मिश्रण है, और किस अनुपात में।" यह विधि गैर-विनाशकारी और सस्ती है। इस तकनीक के कारण, रीसाइक्लिंग के लिए कपड़ों की सटीकता 60% से बहुत अधिक हो गई है, जिससे बड़े पैमाने पर वस्त्रों की बर्बादी रुकी है और CO₂ उत्सर्जन में कमी आई है।
