अन्धविश्वास के खिलाफ देश भर में अभियान चलाने वाले मंटू कुमार,राष्ट्रपति से मिल चुका है सम्मान

अंधविश्वास के खिलाफ लड़ रहे मंटू कुमार की प्रेरक कहानी

अंधविश्वास और तंत्र-मंत्र की जकड़ में आज भी लाखों लोग फंसे हुए हैं। चाहे अनपढ़ हों या शिक्षित, हमारे समाज में कई लोग तंत्र-मंत्र, झाड़-फूंक, और भूत-प्रेत पर विश्वास करते हैं। लेकिन ऐसे भी लोग हैं जो इन अंधविश्वासों को चुनौती देते हैं और अपने जीवन को विज्ञान और सत्य के प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित कर देते हैं। आज हम एक ऐसे ही व्यक्ति मंटू कुमार की प्रेरणादायक कहानी जानेंगे, जो बिहार से ताल्लुक रखते हैं और अंधविश्वास के खिलाफ अपनी लड़ाई के लिए राष्ट्रपति से भी सम्मानित हो चुके हैं।

Inspiring Story of Mantu Kumar who is fighting against Superstition

अंधविश्वास से संघर्ष की शुरुआत

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मंटू कुमार की जिंदगी में एक ऐसा वक्त आया जब उन्हें अपने ही पिता के अंधविश्वास के कारण आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ा। उनके पिता रामभूषण मंडल तंत्र-मंत्र और ज्योतिष में अत्यधिक विश्वास करते थे। उन्होंने यह मान लिया था कि उनकी लॉटरी जरूर लगेगी और वे अमीर हो जाएंगे। इसके चलते उन्होंने काफी पैसे लॉटरी टिकटों पर खर्च कर दिए। इस अंधविश्वास के चलते मंटू के परिवार ने अपनी जमीन और संपत्ति भी गंवा दी, और पढ़ाई में भी रुकावटें आईं। उनके पिता के इस व्यवहार ने मंटू को अंदर तक हिला दिया और तभी उन्होंने तय कर लिया कि वे अंधविश्वास के खिलाफ आवाज उठाएंगे।

व्यक्तिगत अनुभव से मिले सबक

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मंटू कुमार के अनुभवों में एक ऐसा भी वाकया शामिल है, जहां उनके दोस्त के भाई को सांप ने काट लिया था। उसके परिवार वालों ने डॉक्टर के पास जाने की बजाय ओझा को बुलाया ताकि वह तंत्र-मंत्र करके उसे ठीक कर सके। मंटू ने उन्हें समझाने की कोशिश की कि सांप के काटने पर तुरंत मेडिकल इलाज जरूरी होता है, लेकिन परिवार वालों ने उनकी बात नहीं मानी। मंटू के ज़िद करने के बाद आखिरकार उसे डॉक्टर के पास ले जाया गया और उसकी जान बच गई। इस घटना ने मंटू को और दृढ़ बना दिया और वे ठान चुके थे कि अंधविश्वास को जड़ से उखाड़ फेंकना है।

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सक्सेस साइंस फॉर सोसाइटी की स्थापना

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मंटू ने अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद इंडियन रैशनलिस्ट एसोसिएशन के प्रेसिडेंट और मेडिकल कॉलेज के प्रोफेसर डॉ. नरेंद्र नायक के मार्गदर्शन में विज्ञान और तथ्यों को समझा। इसके बाद उन्होंने 2006 में अपने दोस्तों के साथ मिलकर ‘सक्सेस साइंस फॉर सोसाइटी’ की स्थापना की। इस संस्था का उद्देश्य विज्ञान के माध्यम से लोगों में जागरूकता फैलाना था ताकि वे अंधविश्वास और तंत्र-मंत्र की भ्रांतियों से दूर हो सकें। इसके तहत मंटू और उनके साथी विभिन्न जगहों पर नुक्कड़ नाटक, विज्ञान मेला, और चमत्कारों की असलियत उजागर करने का कार्य करते थे।

अंधविश्वासियों से मिली धमकियां

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अंधविश्वास के खिलाफ इस संघर्ष में मंटू को कई बार जान से मारने की धमकियां मिलीं। कई फर्जी बाबाओं ने उनकी टीम पर हमला करने की कोशिश की, क्योंकि मंटू और उनके साथियों ने विज्ञान के सहारे उनके तथाकथित चमत्कारों का पर्दाफाश कर दिया था। मंटू ने कभी नींबू के लाल होने का कारण वैज्ञानिक तरीके से बताया तो कभी नारियल में फूल खिलने का राज़ खोला। उनका यह अभियान बिहार से लेकर झारखंड, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश और अन्य राज्यों तक फैल गया।

सम्मान और पुरस्कार

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मंटू कुमार के इस साहसी कार्य के लिए उन्हें कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। वर्ष 2006 में उन्हें तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के हाथों ‘भारत स्काउट गाइड राष्ट्रपति पुरस्कार’ से नवाजा गया। इसके अलावा, उन्हें नेहरू युवा केंद्र मधुबनी का जिला युवा क्लब पुरस्कार, 2012 में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में राष्ट्रीय विज्ञान प्रदर्शनी में प्रसिद्ध वैज्ञानिक प्रो. यशपाल के हाथों सम्मानित किया गया। 2015 में मिजोरम में आयोजित राष्ट्रीय एकता शिविर में भी उन्हें नेहरू युवा केंद्र मिजोरम के जोनल डायरेक्टर एसआर विष्णोई द्वारा सम्मान मिला। यह पुरस्कार न केवल उनके साहस का प्रतीक हैं बल्कि उनके अंधविश्वास विरोधी अभियान की भी मान्यता है।

निष्कर्ष

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मंटू कुमार जैसे लोग हमें यह सिखाते हैं कि कठिन परिस्थितियों के बावजूद यदि हम अपने उद्देश्यों के प्रति दृढ़ रहते हैं, तो सफलता जरूर मिलती है। अंधविश्वास के खिलाफ उनकी लड़ाई न सिर्फ प्रेरणादायक है, बल्कि समाज के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश भी है। उनकी कहानी हमें इस बात का अहसास कराती है कि विज्ञान और तर्क के आधार पर ही हम एक प्रगतिशील समाज का निर्माण कर सकते हैं। मंटू जैसे लोगों की मेहनत से ही अंधविश्वास और तंत्र-मंत्र के भ्रम को तोड़कर हम एक नई दिशा की ओर बढ़ सकते हैं।

Credit: BiharStory Media

FAQs

मंटू कुमार का अंधविश्वास के खिलाफ संघर्ष क्यों शुरू हुआ?

मंटू कुमार के परिवार को उनके पिता के अंधविश्वास के कारण आर्थिक तंगी और समस्याओं का सामना करना पड़ा। इस घटना ने उन्हें अंधविश्वास के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए प्रेरित किया।

मंटू कुमार ने ‘सक्सेस साइंस फॉर सोसाइटी’ संस्था क्यों बनाई?

उन्होंने ‘सक्सेस साइंस फॉर सोसाइटी’ की स्थापना विज्ञान के जरिए अंधविश्वास को दूर करने और लोगों में जागरूकता लाने के उद्देश्य से की।

मंटू कुमार को कौन-कौन से पुरस्कार मिले हैं?

उन्हें राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के हाथों ‘भारत स्काउट गाइड राष्ट्रपति पुरस्कार’, नेहरू युवा केंद्र का पुरस्कार, और कई अन्य राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुके हैं।

मंटू कुमार की कहानी समाज के लिए क्या संदेश देती है?

उनकी कहानी हमें सिखाती है कि अंधविश्वास के खिलाफ संघर्ष और वैज्ञानिक दृष्टिकोण को अपनाकर ही हम एक प्रगतिशील समाज बना सकते हैं।

मंटू कुमार का अंधविश्वास विरोधी अभियान किन-किन राज्यों में फैल चुका है?

उनका अभियान बिहार से शुरू होकर झारखंड, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, ओडिशा, दिल्ली, हरियाणा और मिजोरम तक फैल चुका है।